Saturday, July 25, 2009

क्रोध-अंहकार

"यह देश, धर्म, दर्शन और प्रेम की जन्मभूमि है। ये सब चीजें अभीभी भारत में विद्यमान है। मुझे इस दुनिया की जो जानकारी है, उसके बलपरद्रुढतापूर्वक कह सक्त हूं कि इन बातों में भारत अन्य देशों की अपेक्षा अब भी श्रेष्ठ है।" - स्वामी विवेकानंद

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प्रेरक प्रसंग

एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्‍धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्‍धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्‍याग आये थे।

सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्‍त नही हुआ है किन्‍तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्‍या क्‍या छोड़ कर आये है ?

सेठ जी ने बड़े उत्‍साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्‍याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्‍न दोबारा किया और सेठ जी का उत्‍तर वही था अन्‍तोगत्‍वा एक बार प्रश्‍न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है।

बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्‍याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्‍यादा कर्त्तव्‍य बोध पर ध्‍यान देना चाहिए।

14 comments:

प्रकाश गोविंद said...

बहुत सुंदर वा ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग !

हमारे व्यक्तित्व की बहुत बड़ी कमजोरियां होती हैं - क्रोध और अंहकार ! हमें इन दोनों बुराईयों पर यथा संभव विजय पाने की कोशिश करनी चाहिए !

तुम ऐसी ही अच्छी बातें लिखती रहो ....
हम खुश हुए !

स्नेह एवं आशीष !

Naveen Tyagi said...

bahut hi sundar post hai.

Alpana Verma said...

Alka achchha laga ki ..tum mere bharat parytan blog par posts padhti ho.

haan mujhe maluum hai..CM blog par is ka logo hai.

thnx and take care,
Alpana

Alpana Verma said...

Dear Alka 'आप और आपके परिवार को होली की अग्रिम शुभ कामनाएं'

Alpana and Family.

Kannan said...

Nice post.

Manish said...

vaah kya story hai....ज्ञानवर्धक

kumar zahid said...

अनुभव ही सिखाता है इंसानों को और व्यवहार उससे सुधर जाता है।
प्रेरक प्रसंग जरूरी हैं। यह ऐन वक्त पर साथ देते हैं
किसी शायर ने कहा है-
बच्चों के नाजुक हाथों को चांद सितारे छूने दो ,
चंद किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।

रंग पंचमी के इन्द्रधनुषी रंग मुबारक!!

kumar zahid said...

कभी अवसर मिलें तो खाकसार की ग़ज़लों का मुआयना करें ज़ायज़ा लें करम फरमाएं। इधर भी आएं.....
http://kumarzahid.blogspot.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

keep it up.........vaah...vaah.....!!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

prernaadaayak prasang.....iske liye dhanyavaad aapko.....

Anonymous said...

or or or

Anonymous said...

सुन्दर लेख..

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत बढ़िया किस्सा....होता भी यही है...

Daisy said...

Gifts for Valentine