"यह देश, धर्म, दर्शन और प्रेम की जन्मभूमि है। ये सब चीजें अभीभी भारत में विद्यमान है। मुझे इस दुनिया की जो जानकारी है, उसके बलपरद्रुढतापूर्वक कह सक्त हूं कि इन बातों में भारत अन्य देशों की अपेक्षा अब भी श्रेष्ठ है।" - स्वामी विवेकानंद
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प्रेरक प्रसंग
एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्याग आये थे।
सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्त नही हुआ है किन्तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्या क्या छोड़ कर आये है ?
सेठ जी ने बड़े उत्साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्न दोबारा किया और सेठ जी का उत्तर वही था अन्तोगत्वा एक बार प्रश्न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है।
बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्यादा कर्त्तव्य बोध पर ध्यान देना चाहिए।